डॉ. कुमार विस्वास जिसकी धुन पर दुनिया नाचे- देश विदेश में कविता और गीतों के जरिए अपने दीवानों को नचाने का माद्दा रखने वाले युवा कवि डॉ। कुमार विश्वास का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनके चाहने वाले गली मोहल्ले से लेकर विदेशों तक में मौजूद हैं। इंटरनेट पर ऑरकुट, यू ट्यूब, और विभिन्न सोशल साईट्स से लेकर कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता का नजारा देखा जा सकता है। इनकी कविताओं ने विदेशों में रह रहे भारतीयों को स्वदेश की मिट्टी से जोड़े रखने में अहम भूमिका निभाई है। कुमार विश्वास इंजीनियर, प्रोफेसर, कवि, लेखक होने के साथ अभिनय में भी हाथ आजमाय है।
हिंदी मंचों के लोकप्रिय कवि डॉ। कुमार विश्वास से बात चीत की हमारे टीवी पत्रकार साथी विवेक वाजपेयी ने। हिंदी मंचों के जादूगर से आपी भी रूबरू हों॥ अच्छा लगे तो बताइयेगा- बृजेश द्विवेदी
कुमार जी बताएं कि आप इस मुकाम तक कैसे पहुंचे और कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।मेरा जन्म पिलखुवा गाजियाबाद में दस फरवरी को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। मेरे पिता जी का नाम डॉ. चंद्रपाल शर्मा है। जो पेशे से शिक्षक थे। मेरी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई । मुझे बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक रहा है। मैंने प्राथमिक शिक्षा से लेकर स्नाकोत्तर स्तर तक जिला, विश्वविद्यालय एवं राज्य स्तर पर वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया। कई पुरस्कार भी जीते। वर्ष 1990-91 में प्रकाशित एस.एस.वी. कालेज हापुड़ की पत्रिका चिन्तन का छात्र संपादक रहा हूं। इसके साथ ही स्नातकोत्तर परीक्षा में मैंने प्रथम स्थान गोल्ड मेडल प्राप्त किया। उसके बाद मैंने एमए, पीएचडी और डीलिट की उपाधि प्राप्त की।
इतनी सफलता कैसे पाई, आपके चाहने वालों में लालू और उद्योगपतियों से लेकर कुली तक शामिल हैं ।
देखिये इस सफलता के पीछे बहुत कड़ी मेहनत मैंने की है जब मैंने कवि सम्मेलनों में शिरकत करनी शुरू की थी तो बहुत से कवियों ने कहा ये कल का लड़का क्या कविता कहेगा। लेकिन मेरी अपनी कविता की बदौलत इतनी अधिक संख्या में श्रोता हमारे पास है जितनी संख्या किसी और समकालीन कवि के पास नहीं है मेरी कविता से खुश होकर स्व० धर्मवीर भारती ने मुझे हिन्दी की युवतम पीढ़ी का सर्वाधिक संभावनाशील गीतकार कहा था। महाकवि नीरज जी उनके संचालन को निशा नियामक कहते हैं। तो प्रसिद्ध हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा के अनुसार वे इस पीढ़ी के एकमात्र ISO 2006 कवि हैं। हास्यरसावतार लालू प्रसाद यादव, अभिनेता राजबब्बर, गोविन्दा, खिलाड़ी राहुल द्रविड़, मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, नीतिश कुमार, टेलीविजन न्यूज के परिचित चेहरों, उद्योगपतियों से लेकर एक कुली तक हमारे प्रसंशक हैं।
कुमार जी आप अपनी उस रचना के बारे में बताएं जो मील का पत्थर साबित हुई है। जिसे लोगों को अक्सर गुनगुनाते देखा जा सकता है।
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है हां ये वो कविता है जो मील का पत्थर साबित हुई है वैसे रचनाकार को अपनी सभी रचनाएं प्रिय होती हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसी रचनाएं बन जाती हैं जो लोगों को काफी पसंद आती हैं और उनकी जुबान पर चढ़ जाती हैं उन्ही में से एक है ये रचना । इसको मैने 2006 में लिखा था जब मैं किसी से प्यार करता था । एक दिन मैं अकेला ऑटो में बैठा जा रहा था और ऑटो की आवाज बहुत डिस्टर्ब कर रही थी उसी दौरान मेरे दिमाग में ये विचार आया जो लोगों को इस कदर पसंद आया ऐसा मैने कभी सोचा भी नहीं था।
आपका प्रिय सब्जेक्ट क्या है जिस पर लिखते हैं आपकी कविताओं ने युवाओं को कवि सम्मेलनों की ओर मोड़ दिया है ऐसा कैसे हुआ?
मेरा प्रिय सब्जेक्ट मानवीय संवेदना है। रही बात युवाओं को इस ओर मोड़ने की तो शायद युवा पीढ़ी मेरी कविता में अपनी छाप देखती है और उसे लगता है कि कवि ने मेरी बात को ही कह दिया है जिसके कारण युवा अपने को जुड़ा हुआ महसूस करता है। और उसे कविता सुनने में रूचि आने लगती है। और उनकी चाहत बढ़ती जाती है । ये युवाओं और लोगों की चाहत ही तो है कि यू ट्यूब पर मेरी कविता दुनिया की कई भाषाओं में देखी और सुनी गई। एक एक परफारमेंस पर तीन चार लाख क्लिक किए गए हैं।
सुना है आपने फिल्मों में गाने भी लिखे हैं और अभिनय भी किया है।
हां एक फिल्म है गरम चाय की प्याली जिसमें गोविन्दा जी के कहने पर मैंने अभिनय किया है जिसमें मेरी भूमिका एक मराठी नेता की है। जो क्षेत्रीय राजनीति में रूचि रखता है और जिसकी एक रखैल भी है। वैसे मेरा एक्टिंग करने का कोई इरादा नहीं है। अनुराग कश्यप की एक फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिख रहा हूं। हालांकि उनका कहना है कि फिल्म में गाने से लेकर आप कुछ भी कर सकते हो अभी तो स्क्रिप्ट पर ही काम चल रहा है। मूड के अतिरिक्त दो और अनटाइटिल्ड फिल्मों में गाने लिखने का काम भी जारी है।
आप लेक्चरर हैं फिर अचानक पढ़ाना छोड़ कर कवि सम्मेलन ही करने लगे शुरूआत में घरवालों का कैसा रिएक्शन था।
मैंने देखा की कविता में बहुत काम करने की जरूरत है और इस फील्ड में युवाओं को आना चाहिए जिसके बाद युवा हमारी बात समझने लगे और सिलसिला बढ़ता चला गया । मैं अभी अवैतनिक अवकाश पर हूं मेरा मानना है जब मैं काम नहीं करता हूं तो पैसा क्यों लू इसलिए अवैतनिक अवकाश ले रखा है। कविता से ही फुर्सत नहीं मिलती की कुछ और कर सकूं। फिलहाल तो कविता में ही रमा हुआ हूं बाकी जिंदगी जिस तरफ ले जाए कुछ पता तो है नही। हां रही बात घर वालों की तो शुरूआत में तो घर वाले मेरे प्रोफेशन के खिलाफ थे लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक होता गया।
आजकल जैसा कि चैनलों पर हंसी के बहाने ना जाने क्या क्या परोसा जा रहा है आपने कभी इन कार्यक्रमों में जाने का रूख नहीं किया।
टीवी पर आजकल जो परोसा जा रहा है उसे बिल्कुल उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि टीवी के कार्यक्रमों में हंसी के बजाय अश्लीलता और फूहड़पन परोसा जा रहा है। मेरा मानना है कि आप किसी को हसाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हां अगर आपकी कविता में दम है तो लोग खुद ही ताली बजाने पर विवश हो जाएंगे। लेकिन टीवी पर तो ऐसे शब्दों का प्रयोग हो रहा है जिसको परिवार के साथ देखने पर शर्मिंदगी महसूस होने लगती है। बल्कि ये कहना गलत नहीं होगा कि कविता की जगह ड्रामे बाजी ज्यादा हो रही है। जो मेरे हिसाब से जायज नहीं है। हां मै जहां पर हू वहीं ठीक हूं ऐसे कार्यक्रमों में जाने का कोई विचार नहीं है।
आजकल चुनावी महौल चल रहा है क्या किसी पार्टी ने आपसे प्रचार करने के लिए संपर्क किया है औऱ क्या आप प्रचार करेंगे।
हां चुनावी महौल तो जरूर है और चुनाव में खड़े कई उम्मीदवार मेरे अच्छे दोस्त भी हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि कुमार विश्वास किसी के मंच पर खड़े होकर किसी को जिताने की बात करने लगें मैं व्यक्तियों के साथ हूं लेकिन किसी पार्टी के साथ नहीं। मैं अपने राजनेता मित्रों को शेर और जुमले तो जरूर बता देता हूं लेकिन मैं किसी के मंच से बोलने नहीं जाऊंगा।
कुमार जी आपका बात करने के लिए बहुत धन्यवाद- मुलाकातइंडिया से साभार