सिर्फ महंगाई में समाजवाद क्यों ?
जिस बाजार भाव पर एक गरीब किसान डीजल खऱीदता है..उसी रेट पर डीजल को एक बड़ी कंपनी भी अपने उपयोग के लिए खरीदती है। जिस बाजार भाव में एक दिहाड़ी मजदूर को गैस सिलेंडर मिलेगा..उसी भाव पर देश के सबसे रईश मुकेश अंबानी को भी मिलेगा..। यानी यूपीए सरकार को कहीं और समाजवाद की याद भले ही ना आई हो.... लेकिन महंगाई के मामले में पूरी समाजवादी है..।
डीजल के दाम में बढ़ोतरी और रसोई गैस में कोटा सिस्टम से देश गुस्से में है..। कई शहरों में लोग और राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता विरोध पर उतरे हैं..। आखिर सवाल उठता है कि जिस सरकार को आम जनता ने चुना वही सरकार उसके हितों से इतनी दूर क्यों चली गई है। सरकार का खजाना खाली है तो उसको वहां की सब्सिडी पर कटौती करनी चाहिए..जो कंपनियों और सम्पन्न लोगों को दी जा रही है। आखिर आम जनता की जेब पर डाका क्यों डाला गया है। सवाल उठता है कि सिर्फ महंगाई में समाजवाद क्यों..। उद्योगपतियों को 13 लाख करोड़ रुपये का टैक्स छूट दे दिया जाता है, उन्हें 2 लाख करोड़ रुपये का कोयला फ्री में बांट दिया जाता है और आम आदमी के लिए 37 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी क्यों नहीं दी जा सकती है। ये ऐसे सवाल हैं आम जनता को कांटों की तरह चुभ रहे हैं...।
यही नहीं मोबाइल टावर चलाने के लिए बड़े पैमाने पर डीजल की खपत होती है..। ये डीजल मोबाइल कंपनियों को उसी भाव पर मिलता है..जिस भाव पर किसानों को..। मतलब साफ है कि जो सब्सिडी डीजल पर सरकार दे रही है..उसका बड़े पैमाने पर लाभ मोबाइल कंपनियां उठा रही हैं..। क्या सरकार आम किसान और इन मोबाइल कंपनियों की आर्थिक स्थिति एक समान समझती है..। अगर ऐसा नहीं है तो सरकार को डीजल की कीमतें बढ़ाने से पहले ये सोचना चाहिए था.. किस वर्ग से सब्सिडी घटाई जाए किस वर्ग से नहीं..। लेकिन ऐसा नही हुआ..। दो बीघे वाले किसान को जिस रेट पर डीजल मिलता है और उसी रेट पर बड़ी कंपनियों को भी..। यही नहीं छह सिलेंडर के बाद सबको सात सौ छियालीस रुपये का गैस सिंलेंडर मिलेगा। यानी साफ है कि सातवां सिलेंडर एक दिहाड़ी मजदूर को सात सौ छियालीस रुपये में मिलेगा और इसी भाव पर देश के सबसे रईश मुकेश अंबानी को भी मिलेगा..। यही बात देश के ब्यूरोक्रेट्स, उद्योगपति और बेहद धनाड्य वर्ग पर भी लागू होती है..। यानी सबके लिए एक ही दर..। ये आम जनता पर अन्याय नहीं तो और क्या है..। आखिर ये सरकार कब समझेगी कि सिर्फ महंगाई में समाजवाद उचित नहीं हैं..।
बृजेश द्विवेदी