आज हिंदी कविता के अप्रतिम हस्ताक्षर अल्हण बीकानेरी हम सबके बीच से चले गये॥ बहत्तर साल की उम्र में चले गये.. मेरे हिसाब से ये उम्र जाने की होती नहीं है लेकिन अब तो कोई कभी भी चला जाता है... मन को समझाता हूं कि ये कोई राम राज्य तो है नहीं कि निश्चित उम्र के बाद ही कोई जायेगा...आजकल कोई कभी भी जाने को स्वतंत्र है.. इसलिए विधि के विधान और काल की गति पर यकीन करना ही पड़ता है..
अल्हण जी कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे.. और उनका स्वास्थ्य काफी गिर गया था.. कवि समाज और उनके चाहने वाले उनके स्वस्थ लाभ होने की दुआएं कर रहे थे... लेकिन अल्हण जी सबको निराश कर गये..। जिंदगी भर सबको हंसाने,खिलखिलाने और प्रफुल्लित करने वाला एकाएक सबको रुला गया.. जब रुला गया तो सब रोये..और खूब रोये..। हिंदी मंचों की वाचिक परंपरा के अदभुत रचनाकार थे अल्हण जी..। आदित्य जी के बाद हास्य के छंदों में उनका कोई सानी नहीं था. उनके हास्य के छंद शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ हुआ करते थे... वे गुरुकुल परंपरा के कवि थे..। देश के कई रचनाकार उनकी उपज हैं... अल्हण जी की मौजूदगी मंच को ऊंचाई और गरिमा प्रदान करती थी..। मंचों पर मुझे भी उनका स्नेह मिला... हलांकि मैं इसकी चर्चा अपनी अगली पोस्ट में करुंगा..।
लगता है इस साल का ये जून का महीना कवियों पर ज्यादा ही भारी पड़ रहा है...। आठ जून को ओमप्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड़ सिंह गुर्जर सड़क हादसे के शिकार हो गये.. घटना में गंभीर रूप से घायल ओम ब्यास अपोलो में जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं.. हम लोगों को विश्वास है कि ईश्वर उन्हें जल्द ठीक करेगा..। चौदह जून को मशहूर हास्य कवि सुरेद्र शर्मा की पुत्र वधू को हार्ट अटैक पड़ा... और वह भी असमय संसार से विदा हो गईं.. छोटी सी उम्र में शर्मा जी की पुत्र वधू का जाना सबको शोक में डुबो गया...।
और आज सत्ररह जून को अल्हण बीकानेरी जी भी हमेशा के लिए अलविदा कह गये.. लेकिन वे अपनी कविताओं के लिए हमेशा याद किये जाएंगे..। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे..।
अंत में एक बात और कहना चाहूंगा कि हिंदी कविता के इन महारथियों के अवसान की खबर..मीडिया को जैसे कवर करनी चाहिए थी वैसी बिल्कुल नहीं की.. या यूं कहें कि टीवी मीडिया ने ना के बराबर की.. मैं अपने चैनल पर अल्हण जी के जाने की खबर को एकाध बुलेटिन जरूर चलवा पाने में कामयाब रहा.. लेकिन एक चना अकेले कितने भाड़ फोड़ सकता है.. ज्यादातर चैनलों में अल्हण जी की खबर को बस टिकर की ही खबर समझा..। यही हाल आदित्य जी के हादसे वाली खबर का भी था ... एक आध चैनलों को छोड़कर बाकी सबने टिकर की ही खबर समझा..।
भगवान मीडिया संचालकों को भी सदबुद्धि दे..अच्छी खबर की परख दे..
Thursday, June 18, 2009
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4 comments:
एक और बुरी खबर. सचमुच जून का महीना कवियों के लिए भारी पड़ रहा है. लेकिन समय हमेशा बदलता रहता है. इसलिए जब वो दिन नहीं रहे तो ये दौर भी गुजर जायेगा. परन्तु कवि समाज में इतनी बड़ी क्षति कभी नहीं हुई.
इस दुःख की घड़ी में सभी को एक होकर एक दूसरे का होंसला बढ़ाना होगा.
ब्रिजेश भाई... जनहृदय और लोकभावों से जुड़े कवियों की खबर कैसी भी हो, टीवी वाले निकृष्टतक सोच से भी सोचते तो भी टीआरपी होती... राम बचाए कूप मंडूकों से, आजकल इन्हें सिर्फ तालीबान, राखी का मंडप और पकी पकाई वीटीआर कैप्टर कॉमेडी ही दिख रही है... आज आईबीएन से भी एक वरिष्ठ साथी चला गया... प्रभु सरस्वती पुत्रों की आत्मा को शांति दे...
खबरी
ye media ka hindi sahitya ke prati kam hoti samvedna hai aur hindi bhasha ka apmaan hai. divangat kaviyon ko sharadhanjali..
हिंदी साहित्य आज तक किसी चैनल पर खबर पा सका है ? यह ही बहुत है की आपके प्रयास से कम से कम आपके चैनल पर यह खबर तो प्रसारित ही हो गयी... हाँ अकेला चना भाड़ तो नहीं फोड़ सकता पर वह अपना काम कर के स्वयं संतोष का अनुभव तो कर ही सकता है....
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