Monday, September 17, 2012



 सिर्फ महंगाई में समाजवाद क्यों ?


जिस बाजार भाव पर एक गरीब किसान डीजल खऱीदता है..उसी रेट पर डीजल को एक बड़ी कंपनी भी अपने उपयोग के लिए खरीदती है। जिस बाजार भाव में एक दिहाड़ी मजदूर को गैस सिलेंडर मिलेगा..उसी भाव पर देश के सबसे रईश मुकेश अंबानी को भी मिलेगा..। यानी यूपीए सरकार को कहीं और समाजवाद की याद भले ही ना आई हो.... लेकिन महंगाई के मामले में पूरी समाजवादी है..।

           डीजल के दाम में बढ़ोतरी और रसोई गैस में कोटा सिस्टम से देश गुस्से में है..। कई शहरों में लोग और राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता विरोध पर उतरे हैं..। आखिर सवाल उठता है कि जिस सरकार को आम जनता ने चुना वही सरकार उसके हितों से इतनी दूर क्यों चली गई है। सरकार का खजाना खाली है तो उसको वहां की सब्सिडी पर कटौती करनी चाहिए..जो कंपनियों और सम्पन्न लोगों को दी जा रही है। आखिर आम जनता की जेब पर डाका क्यों डाला गया है। सवाल उठता है कि सिर्फ महंगाई में समाजवाद क्यों..। उद्योगपतियों को 13 लाख करोड़ रुपये का टैक्स छूट दे दिया जाता है, उन्हें 2 लाख करोड़ रुपये का कोयला फ्री में बांट दिया जाता है और आम आदमी के लिए 37 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी क्यों नहीं दी जा सकती है। ये ऐसे सवाल हैं आम जनता को कांटों की तरह चुभ रहे हैं...।

यही नहीं मोबाइल टावर चलाने के लिए बड़े पैमाने पर डीजल की खपत होती है..। ये डीजल मोबाइल कंपनियों को उसी भाव पर मिलता है..जिस भाव पर किसानों को..। मतलब साफ है कि जो सब्सिडी डीजल पर सरकार दे रही है..उसका बड़े पैमाने पर लाभ मोबाइल कंपनियां उठा रही हैं..। क्या सरकार आम किसान और इन मोबाइल कंपनियों की आर्थिक स्थिति एक समान समझती है..। अगर ऐसा नहीं है तो सरकार को डीजल की कीमतें बढ़ाने से पहले ये सोचना चाहिए था.. किस वर्ग से सब्सिडी घटाई जाए किस वर्ग से नहीं..। लेकिन ऐसा नही हुआ..। दो बीघे वाले किसान को जिस रेट पर डीजल मिलता है और उसी रेट पर बड़ी कंपनियों को भी..। यही नहीं छह सिलेंडर के बाद सबको सात सौ छियालीस रुपये का गैस सिंलेंडर मिलेगा। यानी साफ है कि सातवां सिलेंडर एक दिहाड़ी मजदूर को सात सौ छियालीस रुपये में मिलेगा और इसी भाव पर देश के सबसे रईश मुकेश अंबानी को भी मिलेगा..। यही बात देश के ब्यूरोक्रेट्स, उद्योगपति और बेहद धनाड्य वर्ग पर भी लागू होती है..। यानी सबके लिए एक ही दर..। ये आम जनता पर अन्याय नहीं तो और क्या है..। आखिर ये सरकार कब समझेगी कि सिर्फ महंगाई में समाजवाद उचित नहीं हैं..।
बृजेश द्विवेदी



मुलायम हुए 'मुलायम'


एक ही जगह..एक ही दिन और एक ही सियासी समीकरण लेकिन मुलायम के बदले तेवर..। अपने समर्थकों के बीच में धरतीपुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह को सियासी धरती पर ऱुख बदलते देर नहीं लगती है। पार्टी के कोलकाता अधिवेशन में मुलायम कांग्रेस के खिलाफ बोले और खूब बोले...केन्द्र में खुद को विपक्ष में होने की बात कह दी..ऐसा लगा मानो पूरी तरह मुलायम विपक्षी हो गए हैं...इसी बुनियाद पर वो तीसरा मोर्चा जीवित कर रहे हैं..। लेकिन अगले ही दिन मुलायम ने रायबरेली में अपना प्रत्याशी नहीं उतारने का ऐलान कर दिया..। मतलब साफ है कि कांग्रेस का विरोध भी और साथ भी..। मुलायम पलटी मारने में हमेशा से आगे रहे हैं..। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं..आपको अच्छी तरह याद होगा कि राष्टपति चुनाव को लेकर दिल्ली में सियासत ने कैसे करवट ली थी..। कलाम के नाम पर ममता बनर्जी को मुलायम ने पूरा साथ देने की बात कही..। ममता के साथ-साथ प्रेस कॉन्फ्रेस की..और ममता को पसंद उम्मीदवार कलाम को पूरा समर्थन देने का वादा किया। लेकिन मुलायम का ये वादा अगले ही दिन काफूर हो गया..जब वो कांग्रेस के पक्ष में पलटी मार गए..। ममता ने काफी कोशिश की...राष्टपति चुनाव में मुलायम जरा भी मुलायम नहीं हुए..और ममता को निराशा हाथ लगी..। इससे पहले भी धरतीपुत्र के रुख बदलने के किस्से मशहूर रहे हैं..।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक मुलायम सोची समझी रणनीति पर चल रहे हैं..और शायद यही वजह है कि वो कभी कांग्रेस की जमकर मुखालफत करते हैं और कभी समर्थन..। रणनीति साफ है..दो हजार चौदह के आम चुनाव...जिसमें मुलायम को लगता है कि कांग्रेस का सहारा लेना या कांग्रेस की सरकार में शामिल होने का मौका मिल सकता है..। इसलिए कांग्रेस पर परोपकार करने का मुलायम कोई मौका नहीं गंवा रहे हैं..। शायद यही वजह है कि अपने गृहक्षेत्र इटावा और कन्नौज में चौबीस घंटे बिजली देने के बाद अखिलेश सरकार ने रायबरेली और अमेठी पर भी कृपा की ..।  यूपी विधानसभा चुनाव में कांगेस की रायबरेली और अमेठी दोनों में हालत खस्ता रही..। दोनों क्षेत्र कांग्रेस के गढ़ हैं..। ऐसे में मुलायम ने रायबरेली में प्रत्याशी ना उतारने का ऐलान करके कहीं ना कही कांग्रेस को उपकृत करने की कोशिश की है..।

 वहीं दूसरी तरफ मुलायम ने ममता को छोटी बहन बताया। यानी ममता के गढ़ में मुलायम ने दीदी की नाराजगी दूर करने की कोशिश भी की..। सियासी मायने यहां भी है..। मुलायम को पता है कि पश्चिम बंगाल में ममता की स्थिति लेफ्ट पार्टियों के मुकाबले बेहतर है..। लिहाजा दीदी से सम्बंध मधुर होना जरूरी है। लेफ्ट तो उनका पुराना साथी रहा ही है..। मुलायम बखूबी जानते हैं कि तीसरा मोर्चा बना तो उसमें या तो लेफ्ट आएगा या टीएमसी..। यानी एक म्यान में.. ये दो तलवारे नहीं आएंगी..। लोकसभा चुनाव बाद अगर लेफ्ट.... मुलायम के मोर्चे में शामिल नहीं हुआ तो ममता के आने का विकल्प खुला रहेगा।

बहराल, यूपी की सत्ता फतह करने के बाद मुलायम के हौंसले बुलंद हैं..। कांग्रेस घोटालों से घिरी है...और जनता में यूपीए की जमकर किरकरी हो रही है..वहीं बीजेपी अंतरकलह से जूझ रही है..। ऐसे में मुलायम को लगता है कि उनका सियासी दांव कामयाब हो सकता है..। लेकिन साथ में यह डर भी है कि सफल नहीं हुए तो पीछे लौटने की गुंजाइश भी बनी रहे..। यही वजह है कि वह यूपीए के समर्थक और विरोधी दोनों की भूमिका निभा रहे हैं..।
बृजेश द्विवेदी


Thursday, June 18, 2009

कवियों पर भारी जून...?

आज हिंदी कविता के अप्रतिम हस्ताक्षर अल्हण बीकानेरी हम सबके बीच से चले गये॥ बहत्तर साल की उम्र में चले गये.. मेरे हिसाब से ये उम्र जाने की होती नहीं है लेकिन अब तो कोई कभी भी चला जाता है... मन को समझाता हूं कि ये कोई राम राज्य तो है नहीं कि निश्चित उम्र के बाद ही कोई जायेगा...आजकल कोई कभी भी जाने को स्वतंत्र है.. इसलिए विधि के विधान और काल की गति पर यकीन करना ही पड़ता है..

अल्हण जी कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे.. और उनका स्वास्थ्य काफी गिर गया था.. कवि समाज और उनके चाहने वाले उनके स्वस्थ लाभ होने की दुआएं कर रहे थे... लेकिन अल्हण जी सबको निराश कर गये..। जिंदगी भर सबको हंसाने,खिलखिलाने और प्रफुल्लित करने वाला एकाएक सबको रुला गया.. जब रुला गया तो सब रोये..और खूब रोये..। हिंदी मंचों की वाचिक परंपरा के अदभुत रचनाकार थे अल्हण जी..। आदित्य जी के बाद हास्य के छंदों में उनका कोई सानी नहीं था. उनके हास्य के छंद शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ हुआ करते थे... वे गुरुकुल परंपरा के कवि थे..। देश के कई रचनाकार उनकी उपज हैं... अल्हण जी की मौजूदगी मंच को ऊंचाई और गरिमा प्रदान करती थी..। मंचों पर मुझे भी उनका स्नेह मिला... हलांकि मैं इसकी चर्चा अपनी अगली पोस्ट में करुंगा..।

लगता है इस साल का ये जून का महीना कवियों पर ज्यादा ही भारी पड़ रहा है...। आठ जून को ओमप्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड़ सिंह गुर्जर सड़क हादसे के शिकार हो गये.. घटना में गंभीर रूप से घायल ओम ब्यास अपोलो में जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं.. हम लोगों को विश्वास है कि ईश्वर उन्हें जल्द ठीक करेगा..। चौदह जून को मशहूर हास्य कवि सुरेद्र शर्मा की पुत्र वधू को हार्ट अटैक पड़ा... और वह भी असमय संसार से विदा हो गईं.. छोटी सी उम्र में शर्मा जी की पुत्र वधू का जाना सबको शोक में डुबो गया...।
और आज सत्ररह जून को अल्हण बीकानेरी जी भी हमेशा के लिए अलविदा कह गये.. लेकिन वे अपनी कविताओं के लिए हमेशा याद किये जाएंगे..। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे..।

अंत में एक बात और कहना चाहूंगा कि हिंदी कविता के इन महारथियों के अवसान की खबर..मीडिया को जैसे कवर करनी चाहिए थी वैसी बिल्कुल नहीं की.. या यूं कहें कि टीवी मीडिया ने ना के बराबर की.. मैं अपने चैनल पर अल्हण जी के जाने की खबर को एकाध बुलेटिन जरूर चलवा पाने में कामयाब रहा.. लेकिन एक चना अकेले कितने भाड़ फोड़ सकता है.. ज्यादातर चैनलों में अल्हण जी की खबर को बस टिकर की ही खबर समझा..। यही हाल आदित्य जी के हादसे वाली खबर का भी था ... एक आध चैनलों को छोड़कर बाकी सबने टिकर की ही खबर समझा..।

भगवान मीडिया संचालकों को भी सदबुद्धि दे..अच्छी खबर की परख दे..

Tuesday, June 9, 2009

हिन्दी कविता के आदित्य

बहुत याद आएंगे ओमप्रकाश आदित्य.....

आठ जून । वक्त...सुबह के नौ बजकर अट्ठावन मिनट... यानी मेरे बिस्तर से उठने का समय। आफिस में इवनिंग शिफ्ट है.. लिहाजा मेरे लिए रात भी देर से होती है और सुबह भी देर से..।


मेरी घड़ी का अलार्म मुझे उठाने वाला ही था कि सहारा समय में कार्यकरत पत्रकार मित्र दिग्विजय चतुर्वेदी का फोन आ गया लेकिन फोन को इग्नोर किया.. चूंकि नींद में था सोचा बाद में बात कर लूंगा। लेकिन दिग्विजय ने बराबर फोन मिलाए रखा... मैंने फोन उठाया.. उसने खबर दी कि ब्रजेश पता चला हास्य सम्राट ओमप्रकाश आदित्य नहीं रहे.. मैं हड़बड़ाहट में उठ पड़ा..मैंने कहा क्या बात करते हो अभी आदित्य जी से तीन दिन पहले ही बात हुई थी पूरी तरह से स्वस्थ थे... मुझे यकीन नहीं हुआ..दिग्विजय ने फिर कहा कि सड़क हादसे में ऐसी अनहोनी हुई... मुझे समझने में देर न लगी.. आदित्य चचा कल तो मध्य प्रदेश के विदिशा के कविसम्मेलन में रहे होंगे.. और आज भोपाल में रहना था.. पर मैंने कहा कि तुम्हें कैसे पता चला.. उसने कहा कि मेरे चैनल की हेडलाइन्स है... यकीन करने लगा... टीवी चालू की तो कभी ना होने वाला विश्वास यकीन में बदल गया..। दिल्ली के ओमप्रकाश आदित्य, बैतूर के नीरज विश्वामित्र पुरी, शाहपुर के लाल सिहं गुर्जर के निधन की खबर कई जगह चल रही थी.. साथ ही उज्जैन के ओम ब्यास, धार के जॉनी बैरागी के गंभीर रूप से घायल होने की भी खबर थी..। इसे दैवयोग ही कहेंगे आज रात दो बजे से तीन बजे तक मैंने यू ट्यूब पर आदित्य जी कविताएं सुनता रहा और फिर सोया.. क्या पता कि सुबह होते ही ऐसी अनहोनी खबर मिलेगी... खबर ज्यादातर अनहोनी होती ही हैं..। फोन उठाया तो देखा कई कवि मित्रों के मैसेज पड़े थे.. सब इसी अनहोनी के। मैंने सबसे पहले सरिता शर्मा को फोन लगाया... जो आदित्य जी के साथ ही विदिशा के कविसम्मेलन गई थी..पर सरिता जी का फोन नहीं लग सका.. फिर एक एक करके सुरेन्द्र शर्मा, डॉक्टर कुमार विश्वास और अरुण जैमिनी को फोन लगाया पर नंबर इनके भी बिजी जा रहे थे...


तब तक राजेश चेतन जी का फोन लग गया.. बात हुई.. घटना कैसे कैसे हुई... उन्होंने वही बताया जो सरिता शर्मा, विनीत चौहान, देवल आशीष,प्रदीप चौबे औऱ अशोक चक्रधर सबको बता रहे थे.. क्यों कि ये कवि भी आदित्य जी की इनोवा गाड़ी के पीछे वाली गाड़ियों से आ रहे थे..।
अब मेरे पास भी उत्तर प्रदेश के कवियों के फोन आने लगे.. बृजेश घटना कैसे कैसे हुई.. अब तक मैं भी घटना की जानकारी देने के बारे में सक्षम हो चुका था..।


मैंने कुछ कवियों को जानकारी देने के बाद अपने सीतापुर स्थित घर पर घटना की जानकारी देना जरूरी समझा.. क्योंकि मेरा पूरा परिवार ओम प्रकाश आदित्य,और ओम ब्यास की कविताओं का बहुत बड़ा प्रशंसक है.. पूरा परिवार स्तब्ध रह गया..। मेरे घर में कविता का माहौल ऐसा है कि मेरा सात साल का भतीजा भी अपनी तोतली आवाज में आदित्य जी के छंद सुनाता है..।
इसी उहापोह में आदित्य जी का पार्थिव शरीर एयरोपर्ट पर आने की खबर मुझे सरिता जी ने अपनी रोती हुई आवाज में दी..। मैं भी अपने एक कवि मित्र अमर आकाश के साथ आदित्य चचा के घर G-9/12 मालवीय नगर के लिए चल दिया... हलांकि आदित्य जी के घर में कई बार जा चुका था.. लेकिन इस बार पैर आगे बढ़ने की बजाय पीछे पड़ रहे थे..।
घर के नजदीक पहुंचा तो देखा कि लोगों का हुजूम.. कुछ टीवी चैनलों के रिपोर्टर...कवियों का जमावड़ा, सबकी आंखे नम.. कुछ के अश्रुपूरित नयन.. कुछ के होने वाले... कुछ की आंखों में तेज धारा..ये सब देखते देखते आदित्य जी के घर के गेट पर पहुंच गये.. सरिता जी को सब घेरे खड़े थे.. दिल्ली में सिर्फ वहीं प्रत्यक्षदर्शी कहीं जा सकती थीं.. मुझे देखते ही उनके आंसू तेज हो गये बोली बृजेश हिंदी जगत का ये नुकसान कभी पूरा ना होगा.. तब तक अंदर से अरुण जैमिनी निकले.. मैंने कहा दादा अब हिंदी मंचों पर हास्य के छंद कौन पढेगा.. बस उनके भी आंसू अनियंत्रित हो गये ... ढाढस बंधाया लेकिन अब तक आंसू मेरे भी बहने लगे.. ऐसा ही हर किसी का वहां हाल था.. सुरेन्द्र शर्मा खुद नम आंखों से सबको शांत करा रहे थे.. मुंबई से आये मशहूर हास्य कवि आसकरण अटल हों या हरिओम पवार या कुंवर बेचैन... सब यही कह रहे थे ये क्या हो गया..। शेरजंग गर्ग, गोविंद ब्यास,डाक्टर कुमार विश्वास, जैमिनी हरियाणवी,महेन्द्र शर्मा, दिनेश रघुवंशी यानी दिल्ली के सभी छोटे बड़े कवि और उनके परिवार आदित्य जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने पहुंचे हुये थे..। मैं भी घर के अंदर गया और उनके अंतिम दर्शन किये.. परिजनों का भी रो रोकर बुरा हाल था... दिल्ली की मुख्यमंत्री की तरफ से किरण वालिया और रमाकांत गोस्वामी आदित्य जी के परिवार के प्रति संवेदना प्रकट कर रहे थे..। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने भी अपना शोक संदेश भिजवाया..। भला हो मध्य प्रदेश सरकार का और सूबे के मंत्री लक्ष्मीकांत जी का जिन्होंने दो विमानों की तत्काल ब्यवस्था की.. जिससे एक से आदित्य जी का पार्थिव शरीर तुरंत दिल्ली लाया जा सका..और दूसरा नीरजपुरी का परिवार चंडीगढ़ से बैतूर पहुंच सका..।


मुझे पिछले सात सालों से आदित्य जी के सम्पर्क में रहने का सौभाग्य मिल रहा था.. सात साल पहले मैं आदित्य जी से अपने शहर लखनऊ के एक कवि सम्मेलन में मिला था.. इस छोटी सी अवधि में मुझे तमाम बार आदित्य जी के साथ कविसम्मेलनों में कविता पढ़ने का सौभाग्य मिला.. कई घटनाएं उनसे जुड़ी हुई मुझे याद हैं लेकिन एक घटना का जिक्र जरूर करना चाहूंगा..। कुछ महीने पहले प्रगति मैदान में हिंदी अकादमी ने एक कवि सम्मेलन आयोजित करवाया था.. जिसमें सिर्फ पांच कवि थे.. ओमप्रकाश आदित्य, महेन्द्र अजनवी,वेद प्रकाश, पापुलर मेरठी और मैं..। कवि सम्मेलन का संचालन आदित्य जी ने किया। आदित्य जी ने इस छंद को भी सुनाया था.. जिसकी आज यहां हर कोई चर्चा कर रहा था.... वो अपने एक छंद में भगवान से कहा करते थे..

दाल रोटी दी तो दाल रोटी खा के सो गया मैं..आंशू दिये तूने आंसू लिये जा रहा मैं। मृत्यु का बुलावा यदि भेज देगा आजाऊंगा ..तूने कहा जिये जा तो जिये जा रहा मैं..
इस मंच से पहली बार उन्होंने मेरे छंदों को ठीक बताया था..और शाबासी भी दी थी..। शाबासी तो पहले भी मिलती थी लेकिन आज छंदों को ठीक बताना बडी बात थी.. जब ये मैंने बात दिल्ली के कुछ कवि मित्रों को बताई.. भला आदित्य जी की मिली तारीफ को कैसे छिपा सकता था.. कवि मित्रों का जवाब था कि आदित्य जी किसी की कविता को जल्दी अच्छा कहते नहीं हैं..अगर उन्होंने छंदों की तारीफ की है तो आपके हास्य के छंद भी काबिले तारीफ रहें होंगे..।


आठ जून को आदित्य जी हम सबसे हमेशा के लिए दूर हो गये.. लेकिन उनकी कविताएं हमेशा जिंदा रहेंगी..ईश्वर करे कि आदित्य जी, नीरजपुरी और लाल सिंह की आत्मा को शांति मिले..। भगवान ओम ब्यास और जानी बैरागी को पूर्ण स्वस्थ कर नया जीवन प्रदान करे..।


हास्य के अप्रतिम रचनाकार थे पंडित ओम प्रकाश आदित्य.. हास्य के छंदों में उनका कोई जोड़ नहीं था... लगता नहीं था कि वे अभी छोड़कर चले जाएंगे.. लेकिन चले गये... वो भी हमेशा के लिए...
आठ जून हिंदी जगत के लिए मनहूस दिन साबित हुआ तीन कवियों का एक साथ जाना और हिंदी के प्रख्यात नाटककार हबीब तनवीर का जाना.. हिंदी रंगमंच हबीब साहब को भी हमेशा नमन करेगा.. मेरा भी नमन... आप भी दे सकते हैं अपनी भावांजलि...

Thursday, April 30, 2009

डॉ. कुमार विस्वास


डॉ. कुमार विस्वास

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे-
देश विदेश में कविता और गीतों के जरिए अपने दीवानों को नचाने का माद्दा रखने वाले युवा कवि डॉ। कुमार विश्वास का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनके चाहने वाले गली मोहल्ले से लेकर विदेशों तक में मौजूद हैं। इंटरनेट पर ऑरकुट, यू ट्यूब, और विभिन्न सोशल साईट्स से लेकर कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता का नजारा देखा जा सकता है। इनकी कविताओं ने विदेशों में रह रहे भारतीयों को स्वदेश की मिट्टी से जोड़े रखने में अहम भूमिका निभाई है। कुमार विश्वास इंजीनियर, प्रोफेसर, कवि, लेखक होने के साथ अभिनय में भी हाथ आजमाय है। हिंदी मंचों के लोकप्रिय कवि डॉ। कुमार विश्वास से बात चीत की हमारे टीवी पत्रकार साथी विवेक वाजपेयी ने। हिंदी मंचों के जादूगर से आपी भी रूबरू हों॥ अच्छा लगे तो बताइयेगा- बृजेश द्विवेदी

कुमार जी बताएं कि आप इस मुकाम तक कैसे पहुंचे और कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

मेरा जन्म पिलखुवा गाजियाबाद में दस फरवरी को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। मेरे पिता जी का नाम डॉ. चंद्रपाल शर्मा है। जो पेशे से शिक्षक थे। मेरी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई । मुझे बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक रहा है। मैंने प्राथमिक शिक्षा से लेकर स्नाकोत्तर स्तर तक जिला, विश्वविद्यालय एवं राज्य स्तर पर वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया। कई पुरस्कार भी जीते। वर्ष 1990-91 में प्रकाशित एस.एस.वी. कालेज हापुड़ की पत्रिका चिन्तन का छात्र संपादक रहा हूं। इसके साथ ही स्नातकोत्तर परीक्षा में मैंने प्रथम स्थान गोल्ड मेडल प्राप्त किया। उसके बाद मैंने एमए, पीएचडी और डीलिट की उपाधि प्राप्त की।

इतनी सफलता कैसे पाई, आपके चाहने वालों में लालू और उद्योगपतियों से लेकर कुली तक शामिल हैं ।

देखिये इस सफलता के पीछे बहुत कड़ी मेहनत मैंने की है जब मैंने कवि सम्मेलनों में शिरकत करनी शुरू की थी तो बहुत से कवियों ने कहा ये कल का लड़का क्या कविता कहेगा। लेकिन मेरी अपनी कविता की बदौलत इतनी अधिक संख्या में श्रोता हमारे पास है जितनी संख्या किसी और समकालीन कवि के पास नहीं है मेरी कविता से खुश होकर स्व० धर्मवीर भारती ने मुझे हिन्दी की युवतम पीढ़ी का सर्वाधिक संभावनाशील गीतकार कहा था। महाकवि नीरज जी उनके संचालन को निशा नियामक कहते हैं। तो प्रसिद्ध हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा के अनुसार वे इस पीढ़ी के एकमात्र ISO 2006 कवि हैं। हास्यरसावतार लालू प्रसाद यादव, अभिनेता राजबब्बर, गोविन्दा, खिलाड़ी राहुल द्रविड़, मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, नीतिश कुमार, टेलीविजन न्यूज के परिचित चेहरों, उद्योगपतियों से लेकर एक कुली तक हमारे प्रसंशक हैं।

कुमार जी आप अपनी उस रचना के बारे में बताएं जो मील का पत्थर साबित हुई है। जिसे लोगों को अक्सर गुनगुनाते देखा जा सकता है।

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है हां ये वो कविता है जो मील का पत्थर साबित हुई है वैसे रचनाकार को अपनी सभी रचनाएं प्रिय होती हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसी रचनाएं बन जाती हैं जो लोगों को काफी पसंद आती हैं और उनकी जुबान पर चढ़ जाती हैं उन्ही में से एक है ये रचना । इसको मैने 2006 में लिखा था जब मैं किसी से प्यार करता था । एक दिन मैं अकेला ऑटो में बैठा जा रहा था और ऑटो की आवाज बहुत डिस्टर्ब कर रही थी उसी दौरान मेरे दिमाग में ये विचार आया जो लोगों को इस कदर पसंद आया ऐसा मैने कभी सोचा भी नहीं था।

आपका प्रिय सब्जेक्ट क्या है जिस पर लिखते हैं आपकी कविताओं ने युवाओं को कवि सम्‍मेलनों की ओर मोड़ दिया है ऐसा कैसे हुआ?

मेरा प्रिय सब्जेक्ट मानवीय संवेदना है। रही बात युवाओं को इस ओर मोड़ने की तो शायद युवा पीढ़ी मेरी कविता में अपनी छाप देखती है और उसे लगता है कि कवि ने मेरी बात को ही कह दिया है जिसके कारण युवा अपने को जुड़ा हुआ महसूस करता है। और उसे कविता सुनने में रूचि आने लगती है। और उनकी चाहत बढ़ती जाती है । ये युवाओं और लोगों की चाहत ही तो है कि यू ट्यूब पर मेरी कविता दुनिया की कई भाषाओं में देखी और सुनी गई। एक एक परफारमेंस पर तीन चार लाख क्लिक किए गए हैं।

सुना है आपने फिल्मों में गाने भी लिखे हैं और अभिनय भी किया है।

हां एक फिल्म है गरम चाय की प्याली जिसमें गोविन्दा जी के कहने पर मैंने अभिनय किया है जिसमें मेरी भूमिका एक मराठी नेता की है। जो क्षेत्रीय राजनीति में रूचि रखता है और जिसकी एक रखैल भी है। वैसे मेरा एक्टिंग करने का कोई इरादा नहीं है। अनुराग कश्यप की एक फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिख रहा हूं। हालांकि उनका कहना है कि फिल्म में गाने से लेकर आप कुछ भी कर सकते हो अभी तो स्क्रिप्ट पर ही काम चल रहा है। मूड के अतिरिक्त दो और अनटाइटिल्ड फिल्मों में गाने लिखने का काम भी जारी है।
आप लेक्चरर हैं फिर अचानक पढ़ाना छोड़ कर कवि सम्मेलन ही करने लगे शुरूआत में घरवालों का कैसा रिएक्शन था।

मैंने देखा की कविता में बहुत काम करने की जरूरत है और इस फील्ड में युवाओं को आना चाहिए जिसके बाद युवा हमारी बात समझने लगे और सिलसिला बढ़ता चला गया । मैं अभी अवैतनिक अवकाश पर हूं मेरा मानना है जब मैं काम नहीं करता हूं तो पैसा क्यों लू इसलिए अवैतनिक अवकाश ले रखा है। कविता से ही फुर्सत नहीं मिलती की कुछ और कर सकूं। फिलहाल तो कविता में ही रमा हुआ हूं बाकी जिंदगी जिस तरफ ले जाए कुछ पता तो है नही। हां रही बात घर वालों की तो शुरूआत में तो घर वाले मेरे प्रोफेशन के खिलाफ थे लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक होता गया।

आजकल जैसा कि चैनलों पर हंसी के बहाने ना जाने क्या क्या परोसा जा रहा है आपने कभी इन कार्यक्रमों में जाने का रूख नहीं किया।

टीवी पर आजकल जो परोसा जा रहा है उसे बिल्कुल उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि टीवी के कार्यक्रमों में हंसी के बजाय अश्लीलता और फूहड़पन परोसा जा रहा है। मेरा मानना है कि आप किसी को हसाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हां अगर आपकी कविता में दम है तो लोग खुद ही ताली बजाने पर विवश हो जाएंगे। लेकिन टीवी पर तो ऐसे शब्दों का प्रयोग हो रहा है जिसको परिवार के साथ देखने पर शर्मिंदगी महसूस होने लगती है। बल्कि ये कहना गलत नहीं होगा कि कविता की जगह ड्रामे बाजी ज्यादा हो रही है। जो मेरे हिसाब से जायज नहीं है। हां मै जहां पर हू वहीं ठीक हूं ऐसे कार्यक्रमों में जाने का कोई विचार नहीं है।

आजकल चुनावी महौल चल रहा है क्या किसी पार्टी ने आपसे प्रचार करने के लिए संपर्क किया है औऱ क्या आप प्रचार करेंगे।

हां चुनावी महौल तो जरूर है और चुनाव में खड़े कई उम्मीदवार मेरे अच्छे दोस्त भी हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि कुमार विश्वास किसी के मंच पर खड़े होकर किसी को जिताने की बात करने लगें मैं व्यक्तियों के साथ हूं लेकिन किसी पार्टी के साथ नहीं। मैं अपने राजनेता मित्रों को शेर और जुमले तो जरूर बता देता हूं लेकिन मैं किसी के मंच से बोलने नहीं जाऊंगा।
कुमार जी आपका बात करने के लिए बहुत धन्यवाद- मुलाकातइंडिया से साभार

Tuesday, February 17, 2009

प्रवासी साहित्यकार रेणु राजवंशी गुप्ता का अभिनंदन एवं काव्यगोष्ठी-------------------------------------
दिल्ली के हिंदी भवन में प्रवासी साहित्यकार रेणु राजवंशी गुप्ता के सम्मान में एक विशिष्ठ साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया..। कार्यक्रम में अमेरिका से पधारी साहित्यकार श्रीमती रेनू राजवंशी गुप्ता का अभिनंदन और उनके सम्मान में एक भव्य काव्य गोष्ठी आयोजित हुई..। वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर नरेन्द्र कोहली और डॉक्टर कमल किशोर गोयनका के सानिध्य में शुरु हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने-माने कवि कृष्ण मित्र ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रवासी साहित्यकार श्रीमती रेणु राजवंशी गुप्ता के अभिनंदन से हुआ । साहित्यकार डॉक्टर नरेन्द्र कोहली ने वाग्देवी की प्रतिमा और शॉल उढाकर सम्मानित किया जबकि डॉक्टर गोविंद व्यास ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया..वहीं मशहूर नाटककार डीपी सिन्हा और महेश चन्द्र शर्मा ने पुष्प भेंटकर रेणुजी का अभिनंदन किया..। डॉक्टर नरेन्द्र कोहली ने रेणु राजवंशी की रचनाओं की विस्तार से चर्चा की और उनकी साहित्यिक रचनाओं की सराहना भी की..वहीं डॉ गोविंद व्यास ने रेणु राजवंशी के कृतत्व पर प्रकाश डाला।
श्रीमती रेणु राजवंशी गुप्ता के अभिनंदन के बाद ओज के लोकप्रिय कवि गजेन्द्र सोलंकी के संचालन में सरस काव्य गोष्ठी हुई.. जिसमें दूर-दूर से आये हुए कवियों ने शिरकत की । कवि गोष्टी की शुरुआत वरिष्ठ गीतकार राजगोपाल सिंह की वाणी वंदना से हुई। इसके बाद प्रवासी साहित्यकार रेनू राजवंशी को काब्य प्रेमियों ने जमकर सुना..। उन्होंने अपनी कई रचनाएं सुनाई और अमेरिका में हिंदी भाषा के उत्थान में किये जा रहे कार्यों की चर्चा भी की । इसके बाद युवा कवि नील की कविता- लगता है हम बड़े हो गये हैं.. स्रोताओं ने काफी सराही..।
इसके बाद बलजीत तन्हा ने अपनी कई हास्य की कविताएं सुनायी। इसके बाद कवियत्री प्रीति विश्वास की- हिंदुस्थान हमारा है कविता को लोगों ने खूब वाहवाही दी..। कविगोष्ठी को एक नयी ऊंचाई दी प्रख्यात हास्य कवि अरुण जैमिनी । उन्होंने एक के बाद एक कई रचनाएं सुनायीं..। इसके बाद गौतमबुद्ध नगर से पधारे ओज कवि अली हसन मकरैंडिया ने कई छंद सुनाए.। टीवी पत्रकार और हास्य कवि बृजेश द्विवेदी ने मां पर लिखी कविता को सुनाकर काब्यप्रेमियों की प्रशंसा बटोरी.. छोटी बात को लेकर यहां मचले हुए हो तुम। बड़े अच्छे हुआ करते थे अब बदले हुए हो तुम।बाहर लौटकर आया तो मोटा हो गया था मैं.।अम्मा ने कहा बेटा बड़े दुबले हुए हो तुम ।।
इसके बाद लोकप्रिय कवियत्री सरिता शर्मा ने अपने छंदों, गीतों और मुक्तकों से उपस्थित जनसमुदाय का दिल जीत लिया..उनका ये मुक्तक काफी सराहा गया
चाहे दुनिया से दूर हो जाऊं।तेरी आंखों का नूर हो जाऊं। तेरी राधा बनूं या न बनूं,तेरी मीरा जरूर हो जाऊं।।
चर्चित हास्य कवि यूसुफ भारद्वाज ने जब अपनी चिरपरिचित अंदाज में कविताएं सुनायी तो ठहाकों से हॉल गूंज पड़ा..। गाजियाबाद से पधारी कवियत्री अंजू जैन ने अपनी कई गजलों को सुनाया। इसके बाद डॉक्टर टीएस दराल की इस कविता को खूब दाद मिली.
नये साल में खुशी के गुब्बारें हों। चारो ओर हंसी के फव्वारे हो । न सीमा पर कोई विवाद हो, और न मुंबई सा आतंकवाद हो।।
कविगोष्ठी को संचालन कर रहे हिंदी मंचों के लोकप्रिय कवि गजेन्द्र सोलंकी अपनी विशिष्ठ शैली के छंदों को सुनाकर कार्यक्रम में शमां बांध दिया..। काब्य प्रेमियों की मांग पर उन्होंने चर्चित अप्रवासी गीत- चंदन सी महक पसीने में- सुनायी.. तो स्रोताओं ने तालियों की धुन से पूरे गीत में साथ दिया..। बर्किंम से पधारे साहित्यकार डॉक्टर कृष्ण कुमार ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया..।
काब्य गोष्ठी में डॉक्टर गोविंद व्यास,रितु गोयल,रमा सिंह,बागी चाचा,शंभु शिखर,रसिक गुप्ता,अमर आकाश इत्यादि कवियों ने काव्य पाठ किया..अंत में अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि कृष्ण मित्र ने अपनी देश प्रेम की कई कविताएं सुनायी। कार्यक्रम का आयोजन साहित्यिक संस्था शब्दांचल, दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन और दिशा फाउण्डेशन के सहयोग से किया गया..। इस मौके पर महेश चंद्र शर्मा ने आये हुए अतिथियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में वीरेद्र मेहता, आरपी बंसल, अतुल जैन, चौधरी बाल किशन और विजय शर्मा विशेष रूप से मौजूद रहे।

काब्य गोष्टी

प्रवासी साहित्यकार रेणु राजवंशी गुप्ता का अभिनंदन एवं काव्यगोष्ठी-------------------------------------
दिल्ली के हिंदी भवन में प्रवासी साहित्यकार रेणु राजवंशी गुप्ता के सम्मान में एक विशिष्ठ साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया..। कार्यक्रम में अमेरिका से पधारी साहित्यकार श्रीमती रेनू राजवंशी गुप्ता का अभिनंदन और उनके सम्मान में एक भव्य काव्य गोष्ठी आयोजित हुई..। वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर नरेन्द्र कोहली और डॉक्टर कमल किशोर गोयनका के सानिध्य में शुरु हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने-माने कवि कृष्ण मित्र ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रवासी साहित्यकार श्रीमती रेणु राजवंशी गुप्ता के अभिनंदन से हुआ । साहित्यकार डॉक्टर नरेन्द्र कोहली ने वाग्देवी की प्रतिमा और शॉल उढाकर सम्मानित किया जबकि डॉक्टर गोविंद व्यास ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया..वहीं मशहूर नाटककार डीपी सिन्हा और महेश चन्द्र शर्मा ने पुष्प भेंटकर रेणुजी का अभिनंदन किया..। डॉक्टर नरेन्द्र कोहली ने रेणु राजवंशी की रचनाओं की विस्तार से चर्चा की और उनकी साहित्यिक रचनाओं की सराहना भी की..वहीं डॉ गोविंद व्यास ने रेणु राजवंशी के कृतत्व पर प्रकाश डाला।
श्रीमती रेणु राजवंशी गुप्ता के अभिनंदन के बाद ओज के लोकप्रिय कवि गजेन्द्र सोलंकी के संचालन में सरस काव्य गोष्ठी हुई.. जिसमें दूर-दूर से आये हुए कवियों ने शिरकत की । कवि गोष्टी की शुरुआत वरिष्ठ गीतकार राजगोपाल सिंह की वाणी वंदना से हुई। इसके बाद प्रवासी साहित्यकार रेनू राजवंशी को काब्य प्रेमियों ने जमकर सुना..। उन्होंने अपनी कई रचनाएं सुनाई और अमेरिका में हिंदी भाषा के उत्थान में किये जा रहे कार्यों की चर्चा भी की । इसके बाद युवा कवि नील की कविता- लगता है हम बड़े हो गये हैं.. स्रोताओं ने काफी सराही..।
इसके बाद बलजीत तन्हा ने अपनी कई हास्य की कविताएं सुनायी। इसके बाद कवियत्री प्रीति विश्वास की- हिंदुस्थान हमारा है कविता को लोगों ने खूब वाहवाही दी..। कविगोष्ठी को एक नयी ऊंचाई दी प्रख्यात हास्य कवि अरुण जैमिनी । उन्होंने एक के बाद एक कई रचनाएं सुनायीं..। इसके बाद गौतमबुद्ध नगर से पधारे ओज कवि अली हसन मकरैंडिया ने कई छंद सुनाए.। टीवी पत्रकार और हास्य कवि बृजेश द्विवेदी ने मां पर लिखी कविता को सुनाकर काब्यप्रेमियों की प्रशंसा बटोरी.. छोटी बात को लेकर यहां मचले हुए हो तुम। बड़े अच्छे हुआ करते थे अब बदले हुए हो तुम।बाहर लौटकर आया तो मोटा हो गया था मैं.।अम्मा ने कहा बेटा बड़े दुबले हुए हो तुम ।।
इसके बाद लोकप्रिय कवियत्री सरिता शर्मा ने अपने छंदों, गीतों और मुक्तकों से उपस्थित जनसमुदाय का दिल जीत लिया..उनका ये मुक्तक काफी सराहा गया
चाहे दुनिया से दूर हो जाऊं।तेरी आंखों का नूर हो जाऊं। तेरी राधा बनूं या न बनूं,तेरी मीरा जरूर हो जाऊं।।
चर्चित हास्य कवि यूसुफ भारद्वाज ने जब अपनी चिरपरिचित अंदाज में कविताएं सुनायी तो ठहाकों से हॉल गूंज पड़ा..। गाजियाबाद से पधारी कवियत्री अंजू जैन ने अपनी कई गजलों को सुनाया। इसके बाद डॉक्टर टीएस दराल की इस कविता को खूब दाद मिली.
नये साल में खुशी के गुब्बारें हों। चारो ओर हंसी के फव्वारे हो । न सीमा पर कोई विवाद हो, और न मुंबई सा आतंकवाद हो।।
कविगोष्ठी को संचालन कर रहे हिंदी मंचों के लोकप्रिय कवि गजेन्द्र सोलंकी अपनी विशिष्ठ शैली के छंदों को सुनाकर कार्यक्रम में शमां बांध दिया..। काब्य प्रेमियों की मांग पर उन्होंने चर्चित अप्रवासी गीत- चंदन सी महक पसीने में- सुनायी.. तो स्रोताओं ने तालियों की धुन से पूरे गीत में साथ दिया..। बर्किंम से पधारे साहित्यकार डॉक्टर कृष्ण कुमार ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया..।
काब्य गोष्ठी में डॉक्टर गोविंद व्यास,रितु गोयल,रमा सिंह,बागी चाचा,शंभु शिखर,रसिक गुप्ता,अमर आकाश इत्यादि कवियों ने काव्य पाठ किया..अंत में अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि कृष्ण मित्र ने अपनी देश प्रेम की कई कविताएं सुनायी। कार्यक्रम का आयोजन साहित्यिक संस्था शब्दांचल, दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन और दिशा फाउण्डेशन के सहयोग से किया गया..। इस मौके पर महेश चंद्र शर्मा ने आये हुए अतिथियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में वीरेद्र मेहता, आरपी बंसल, अतुल जैन, चौधरी बाल किशन और विजय शर्मा विशेष रूप से मौजूद रहे।